क्या हम वाक़ई चाहते है कि कोरोना ख़त्म हो?


आए दिन मैं किसी ना किसी को ये पूछते हुए सुनता हूँ कि 'ये कोरोना आख़िर जा क्यूँ नहीं रहा है' या फ़िर 'आख़िर ये कब जाएगा?' और मैं यही जवाब देता हूँ कि, जब तक हम सतर्क नहीं बनेंगे, जब तक हम अपने तौर-तरीके जो कोरोनावायरस के फैलने के अनुकुल है उन्हें नहीं बदलेंगे तब तक ये ऐसे ही फैलते रहेगा। जब भी मैं मार्केट जाता हूँ तो मैं अनगिनत लोगों को बिना मास्क के देखता हूँ या फ़िर मास्क ऐसे पहने हुए जो ना पहनने के बराबर है। कुछ तो मार्केट तक मास्क पहनकर आते है जो ज़रूरी नहीं है पर मार्केट में जब भी किसी से बात करनी हो तो मास्क उतार देते हैं जब उसे पहनना बेहद जरूरी है। इन सबका कारण जो भी हो, पर ये सब वो चीज़े है जिनसे कोरोना के फैलने का ख़तरा रहता है। जब तक हम अपने तौर-तरीकों में सुधार नहीं लाएँगे तब तक कोरोना यूँही फैलते रहनेवाला है। ग्रीष्म में लगी जंगल के आग के भाँति कोरोना अपने आप तो थमने वाला है नहीं।

तो क्या हम इस भीषण आग को रोकने की कोशिशे कर रहे हैं? 

मुंबई में विपक्ष यानी भाजपा माँग कर रही है कि जब बार (bar, मधुशाला) खुले हो सकते है तो मंदिर भी खुलने चाहिए जैसे उन दोनों में कोई अटूट रिश्ता हो। महाराष्ट्र के राज्यपाल महोदय ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे जी से पूछा है कि क्या शिवसेना नेता "अचानक से धर्मनिरपेक्ष" हो गए हैं। जैसे कि धर्मनिरपेक्ष होना कोई गुनाह हो। कोई उन्हें बस उस संविधान की जिसकी उन्होंने शपथ ग्रहण की है उसकी याद दिला दे जिसकी प्रस्तावना यानी परिचय में धर्मनिरपेक्ष होने की बात लिखी गई है। ख़ैर, राजनीति महाराष्ट्र से लेकर बिहार और उत्तर-प्रदेश से लेकर कश्मीर तक अपने चरम पर है और आम जनता हाशिये पर - बिल्कुल आत्मनिर्भर -जैसे प्रधान मंत्री ने चाहा था। अस्पताल में कोरोना के इलाज के लिए बिस्तर मुहैया हो या ना हो पर सड़क पर मास्क ना पहनने पर हजार रुपयों का जुर्माना ज़रूर मुहैया कर दीया गया है। केंद्र सर्कार राज्यों के अपने पैसे (जीएसटी dues) लौटाने में सक्षम नहीं है पर चाहती है कि लोग सभी नियम-कानूनों का पालन करे वर्ना जुर्माना भरने के लिए तैय्यार रहे -लोगों से तो कोई पूछ भी नहीं रहा कि उनके पास जुर्माने के लिए कोई धनराशि है या नहीं। खैर लोगों की इतनी मज़ाल भी नहीं की वो पुलिस से सवाल-जवाब करे। और अगर कोई पूछने की सोच भी रहा है तो वो एक बार तमिलनाडु के जयराज और बेनीक को याद कर ले। आप को शायद लगे कि मैं ड़र फैला रहा हूँ पर बर्खुरदार, ड़र का महौल तो यहाँ कब से है!

डर की ख़बरों के लिए उत्तर प्रदेश, बिहार या तमिलनाडु बहुत दूर के प्रतीत हो तो मैं अपने ही शहर का ज़िक्र कर लेता हूँ। कुछ महीने पहले जब कोरोना के मामले बढ़ रहे थे तो ज़िला अस्पताल के हाल का किसी व्यक्ती ने फेसबुक पर वीडियो डाला था ये बताते और दिखाते हुए कि कैसे कचरा इधर उधर फेंका गया है, बाथरूम साफ नहीं है, कोई स्त्री जिसकी कोरोना से मृत्यु हो गई थी उसके वस्त्र आदि फ़र्श पर ऐसे ही फेंके गए है, वह यह भी बता रहा था कैसे डॉक्टर पूरे दिन एक बार भी हाल पूछने नहीं आते हैं, कैसे कोई भी आईसीयू में बिना इलाज आ-जा सकता है इत्यादि। हुआ यूँ कि उस व्यक्ती को दूसरे दिन पुलिस ने पीट दिया और उससे सॉरी बुलवा लिया। व्यवस्था में कोई सुधार आया? अगर कोई सुधार चाहता तो उस व्यक्ती की पिटाई नहीं कर्ता ब्लकि शानो-शौकत से उसका शुक्रिया अदा कर रहा होता क्योंकि उसने सिस्टम की खामियों को उजागर किया था। ख़ैर छोड़िए ईन सब बातों को। सत्ता और व्यवस्था के बारे में जितनी कम बातें करे वही अच्छा है।

मैं आप लोगों को कोरोना के मद्देनजर अपने यहाँ का हाल बताता हूँ जिससे आप अंदाजा लगा लीजिए कि कोरोना कब तक जाने वाला है या हम किस हद्द तक चाहते है कि यह बीमारी चली जाए।

वैसे आजकल मैं शहर से काफ़ी दूर हूँ और मेरे दो किलोमीटर के दायरे में अब तक कोरोना का कोई मामला सामने आया है नहीं। अच्छा ही है क्योंकि अगर यहाँ पर मामले बढ़ गए तो उनकों संभालने के लिए यहाँ कोई स्पेशलटी अस्पताल है नहीं। लोग रोज मार्केट जाते है और अपनी-अपनी नौकरियों पर भी। अब तक तो सब ठीक से चल ही रहा है। और मैं चाहूँगा कि आगे भी चले। जैसे कि मैंने इससे पहले ज़िक्र किया सबकुछ अच्छा इसलिए नहीं है क्योंकि हम मास्क पहन रहे है और अपने चेहरे को छूने से पहले साबुन से बार-बार हाथ धो रहे है क्योंकि ज़्यादातर लोगों ने इन्ह सब चीजों से अपनी सोशल डीस्टंसींग यानी सामाजिक दूरी बना ली है। अगर ऐसा है तो जब मुंबई और बैंगलोर में मामले बढ़ रहे है तो यहाँ पर हम सब बच कैसे रहें है? क्या इस चमत्कार का वास्ता यहाँ पर एक दुसरे के सामने खड़े मंदिर और मस्जिद है? कुछ लोग शायद आपको यही जवाब दे। ज़्यादातर घर यहाँ पर समंदर के किनारे है और जब सुनामी आयी थी (कई साल पहले) तो पानी में चढ़ाव यहाँ पर भी हुआ था हालाँकि किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ जिसका श्रेय यहाँ के लोगों ने इन्हीं मंदिर-मस्जिद को दे दिया था। यह अलग बात है कि चेन्नई जहां पानी किनारे से बहुत अंदर आ पहुँचा था वह समुद्री तट सुनामी के केंद्र की तरफ वाला है और हमारे यहाँ की ज़मीन उनके मामले काफ़ी ऊपर भी है। खैर, कोरोना भारत में बाहर से आया है। मतलब जब तक कोई कोरोना संक्रमित व्यक्ती भारत नहीं आया था तब तक भारत में कोरोना नाम की बीमारी भी थी नहीं। हमारे यहाँ का हाल ठीक वैसा ही है। शायद। बात जो भी हो, हजार बातों की एक बात ये है कि अब तक कोई संक्रमित नहीं है इसका मतलब ये नहीं कि आगे भी नहीं होगा। हो सकता है और नहीं भी। नहीं हुआ तो बेहद अच्छी बात है पर अगर हो गया तो यह वायरस यूँ फैलेगा कि जीना बेहाल हो जाएगा। वह इसलिए क्योंकि यहाँ पर लोग रोज एक दूसरे से किसी न किसी बहाने मिल लेते है, मार्केट वगैरह छोड़ भी दे तो सुबह और शाम समंदर के किनारे गप्पे-शप्पे बहुत होते है, और सब बिना कोई सावधानी बरते। इसका मतलब ये नहीं कि सब कोरोना की मांग कर रहे हो। किसी को उन्ह चीजों से नहीं गुज़रना है जिनसे मुंबई, गोवा, दिल्ली, पुणे जैसे शहरों में स्थित लोग गुज़रे है।

वैसे सतर्कता तो थी काफ़ी देर तक। काफ़ी लोग तो पहले दूध के पैकेट से लेकर सब्जियों तक को धो-धोकर ईस्तेमाल करते थे। गणेश चतुर्थी भी बहुत दबे दबे अंदाज़ से मनायी गयी थी और उसके बाद यहाँ पे स्थित दरगाह वाले पीर बाबा का उर्स जो सबसे बड़ा, शानदार और लोगों से कचा-कच भरा हुआ हुआ करता था वह भी इस बार (सिर्फ दो हफ्ते पहले) बहुत छोटे स्तर पर बिना कोई भीड़ के मनाया गया था। उर्स के बाद आयी है नवरात्रि और दशहरा। और अचानक से मानों लोगों में बेवजह का जोश भर गया है। इस बार डांडिया नहीं हो रहा जो शुक्र मनाने की बात है पर मंदिर में दिनभर भीड़ जुटी रहती है। दूर दूर से लोगों का आना जाना हो रहा है मानो वक़्त सुहाना हो और कोरोनावायरस एक भ्रामक पंचतंत्र की कहानी। मंदिर में कीर्तन हो रहे है जिसके लिए लोग घंटों बैठे रहते है मतलब एक ही मिली-जूली हवा में साँस लेना और उसके बाद पुजा जिसके लिए आरती के ख़तम होने तक और भी पास आ कर सब खड़े हो जाते हैं, एक कमरे में, एक ही हवा में साँस भरते हुए। और मानों ये सब काफ़ी नहीं था, या लोगों ने ठान लिया हो कि कोरोना को चैलेंज करना है, उसे आँख दिखानी है - तो कीर्तन और आरती के बाद होती है नीलामी (हम यहाँ इसे सवालो कहते हैं)। घंटों तक लोग जो नारियल, केले, अन्य फल, साड़ी, अगरबत्ती, चावल चढ़ावे के लिए लाते हैं उनकी नीलामी होती है। पुजा का प्रसाद नीलामी के बाद ही वितरण किया जाता है ताकि आप नीलामी से पहले घर ना निकल सके। मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि इन सब हरकतों से कोरोना फैल जाएगा। मेरी क्या मज़ाल? ज़रूर ही भगवान, यहाँ पर विराजमान माँ दुर्गा, सभी भक्तों की रक्षा करेंगी। तिरुपति में 700 से ज्यादा मंदिर के कर्मचारी संक्रमित हुए है, शिर्डी, और अयोध्या में भी ऐसे ही मंदिर के कर्मचारी संक्रमित होने की ख़बरें है। साउथ कोरिया में शुरुआत के अस्सी प्रतिशत संक्रमित के मामले एक व्यक्ती की वज़ह से थे जिन्होंने चर्च के चक्कर लगाए थे और वहाँ से पूरे देश में संक्रमण फैल गया था। निजामुद्दीन मर्कज़ के बारे में आपने नहीं सुना हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता। टीवी और अन्य लोगों ने इस वाक़या को हर किसी तक पहुँचाने में कोई कसर तो छोड़ी है नहीं। अयोध्या के भगवान राम ने, शिर्डी के साई ने, तिरुपति के बालाजी ने, चर्च और मस्जिद में स्थित अपने अपने भगवान ने जो नहीं किया वह यहाँ के भगवान ज़रूर करेंगे। आज तो जिला न्यायाधीश भी मंदिर आए थे। हम सबको एक अज़ीब और अविस्मरणीय भरोसा है कि कोरोना करोड़ों लोगों को क्यों न हुआ हो पर हमको नहीं होगा।


ये कोरोना रोज इतना फैलता कैसे है? क्यों फैलता है?

 

वैसे भगवान की अपनी सीमा होती है। हम भगवान से जो मांगते हैं, जिन्ह चीज़ों की माँग करते है, उन आकांक्षाओं की अपनी एक सीमा होती है। संत तुकाराम महाराज ने एक बात कही थी कि अगर आप एक जगह से दूसरी जगह जाना चाहते हो तो आपको खुद उठकर अपना सफर तय करना होगा, कोई भी प्रार्थना या गुहार आपकी मदद नहीं करने वाली है। दूसरी बात मैं कर देता हूँ। अगर कोई प्रकांड पंडित भी आग में हाथ डालकर बैठेगा तो उसके हाथ को जलने से कोई प्रार्थना नहीं बचा सकती। बातों का तात्पर्य बस इतना ही है कि आस्था, श्रद्धा, प्रार्थना, ये सब अपनी अपनी जगह है और आप उनका वहन जरूर करे पर ये भी समझे की आस्था और नादानी में फर्क़ होता है। जब हमें मालूम है कि बाहर वायरस है जो लोगों की जाने ले रहा है (भारत में ही सवा लाख से अधिक जाने जा चुकी है), जो एक दूसरे के संपर्क में आने से फैलता है तो बाहर जाना और ठीक वैसे वातावरण को साँझा करना जो वायरस के संक्रमण के लिए अनुकूल हो यह सिर्फ नादानी ही नहीं बल्कि अपराधिक है। मुझे पूरा यकीन है कि भगवान इसकी अनुमति न देता होगा वर्ना तिरूपति मे 700 से अधिक मामले नहीं आते नाही राम जन्मभूमि के भूमि पूजन वाले पंडित संक्रमित होते। इशारों को समझिए। अगर वायरस एक जगह से दूसरी जगह फैल रहा है तो उसकी वज़ह इंसान खुद है।

अगर हम बदलाव चाहते हैं तो हमे खुद बदलना होगा, हमारे तौर-तरीकों को बदलना होगा। हमे और सतर्क होना पड़ेगा।इस बिमारी का एक दिन अंत जरूर होगा यह निश्चित है पर कितनी लाशों के बाद होगा यह अनिश्चित है जिसका निर्णय हमे करना है। यह वायरस कब ख़तम होगा यह हम सब मिलकर तय करेंगे पर उससे पहले हमे एक ज़रूरी सवाल का जवाब ढूँढना है। क्या वाक़ई हम चाहते है कि कोरोनावायरस का दौर खत्म हो? अब तक की तस्वीरों से ऐसा लगता तो नहीं है!

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