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क्या हम वाक़ई चाहते है कि कोरोना ख़त्म हो?
आए दिन मैं किसी ना किसी को ये पूछते हुए सुनता हूँ कि 'ये कोरोना आख़िर जा क्यूँ नहीं रहा है' या फ़िर 'आख़िर ये कब जाएगा?' और मैं यही जवाब देता हूँ कि, जब तक हम सतर्क नहीं बनेंगे, जब तक हम अपने तौर-तरीके जो कोरोनावायरस के फैलने के अनुकुल है उन्हें नहीं बदलेंगे तब तक ये ऐसे ही फैलते रहेगा। जब भी मैं मार्केट जाता हूँ तो मैं अनगिनत लोगों को बिना मास्क के देखता हूँ या फ़िर मास्क ऐसे पहने हुए जो ना पहनने के बराबर है। कुछ तो मार्केट तक मास्क पहनकर आते है जो ज़रूरी नहीं है पर मार्केट में जब भी किसी से बात करनी हो तो मास्क उतार देते हैं जब उसे पहनना बेहद जरूरी है। इन सबका कारण जो भी हो, पर ये सब वो चीज़े है जिनसे कोरोना के फैलने का ख़तरा रहता है। जब तक हम अपने तौर-तरीकों में सुधार नहीं लाएँगे तब तक कोरोना यूँही फैलते रहनेवाला है। ग्रीष्म में लगी जंगल के आग के भाँति कोरोना अपने आप तो थमने वाला है नहीं। तो क्या हम इस भीषण आग को रोकने की कोशिशे कर रहे हैं? मुंबई में विपक्ष यानी भाजपा माँग कर रही है कि जब बार (bar, मधुशाला) खुले हो सकते है तो मंदिर भी खुलने चाहिए जैसे उन दोनों में क
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