और कितने लाशों पर अपना नाम लिखेंगे आप?

16 मज़दूर औरंगाबाद में ट्रैन की पटरी के नीचे कुचल के मर गए है। शायद आप तक यह खबर पहुंच भी गई है। आपको शायद बताया जा रहा है कि यह हादसा था। हादसा क्या होता है? हादसा वह होता है जहां किसीको पता नहीं रहता कि वह होनेवाला है। रवीश कुमार अपने चैनल पर हफ्तों से बता रहे थे/है कि पुलिस अपने गंतव्य की तरफ चलनेवाले मज़दूर वर्ग के लोगों को रास्तो से कैसे हटा रही है और पुलिस से बचने के लिए मज़दूर कैसे रेल्वे की पटरियों पर चल रहे है। वे कह रहे थे कि यह कितना भयावह और ख़तरनाक है। वे पुछ रहे थे कि जैसे हमने भारत के बाहर से भारतीयों को फ़्लाइट पर लाया वैसे मजदूरों की घर जाने की व्यवस्था क्यों नहीं की जा रही है... आप शायद रवीश को सुन नहीं रहे थे, आप शायद व्यस्त थे सुधीर चौधरी जैसे गोदी मीडिया को सुनने में जो पैदल चलते मज़दूर और शराब के लिए लाइन लगाने वाले लोगों में फर्क़ तक नहीं कर पाते - कैसे करेंगे वो भी - उनके ऐसी स्टुडियों से सब कीड़े-मकोड़े बाहर उनको एक ही तरह के दिखते है। और आप उनकी बातों में मस्त है। आपने अपने विवेक और बुद्धि का त्याग तो सरकार के चरण कमलों में कब का कर दिया है... मुबारक हो आप...